Wednesday, November 27, 2024
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यमुना में क्रूजों का चलन लाभकारी या हानिकारी?

विजय कुमार गुप्ता

मथुरा। वृंदावन से गोकुल तक क्रूज को चलाने की शुरुआत होने जा रही है कहा जा रहा है कि इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। क्रूज के चलने से नफा कम और नुकसान अधिक होने की संभावना है। वह ऐसे कि आजकल नावें तो नाम मात्र की रह गई हैं और मोटर बोट अधिक हैं।
     जब मोटर बोट दनदनाती हुई चलती है तब यमुना जी के पानीं में उथल-पुथल सी होती है और उसी की वजह से लहरें बनकर छपाक से किनारे पर घाटों की सीढ़िया से टकराती है। जिसके फलस्वरुप पानीं जोर से उछाल मारता है और यमुना किनारे बैठकर पूजा कर रहे लोग भीग जाते हैं तथा पूजन सामग्री भी तितर वितर हो जाती है। ऐसे मौके पर आस्था से पूजन कर रहे भक्तों जिनमें बाहर से आए श्रद्धालु तीर्थ यात्री भी होते हैं। वे यकायक हुए इस घटनाक्रम से व्यथित हो जाते हैं महिलाओं को ज्यादा परेशानी होती है।
     अब सोचने की बात यह है कि जब क्रूज दहाड़ते हुए दौड़ेंगे तब तो लहरों के हमले और भी तेज हो जाएंगे। स्थानींय लोगों ने उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद के उपाध्यक्ष श्री शैलजा कांत मिश्र का ध्यान इस ओर आकर्षित करते हुए क्रूजों के चलन पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है।
     इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि कायदे से इन मोटर वोटों का चलना भी बंद होना चाहिए क्योंकि यमुना जी में पतवार वाली नावें ही शोभा देती है ना कि हुर्र हुर्र करके भन्नाटे लेती मोटर बोटें। एक और बात यह है कि यह पूरे लोहे से बनी हैं और उनकी ऊंचाई नाव की तुलना में थोड़ी अधिक होने में यात्रियों खास करके महिलाओं को मोटर बोट में चढ़ने में बहुत दिक्कत होती है।
     यही नहीं जिस प्रकार नाव में आराम से बैठकर घूमने का जो आनंद मिलता है वह इसमें बिल्कुल नहीं क्योंकि इसमें जमीन पर बैठने का सिस्टम नहीं होता और कुर्सी नुमा बैठने का सिस्टम होता है वह आराम देह नहीं तकलीफ देह होता है। आजकल देखने को यह मिल रहा है कि कुछ मोटर वोट चालक तेज आवाज में फूहड़ गाने बजाते हैं तथा मौज मस्ती को आए लड़के लड़कियां उनकी धुन पर डांस भी करने लग जाते हैं। यह सब उद्दंडता धार्मिक वातावरण को दूषित करती है।
     लोगों का कथन है कि पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर क्रूजों का चलना गलत है इसके अलावा मोटर वोटों को भी वृंदावन से गोकुल तक प्रतिबंधित कर देना चाहिए। ब्रजभूमि श्रद्धालु तीर्थ यात्रियों की भावनाओं के अनुरूप होनी चाहिए ना कि मौज मस्ती यानी तफरी के लिए आने वालों की खुशी के लिए।
     कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है कि शासन और प्रशासन को ऐसे कार्यों से बचना चाहिए जिससे भीड़ का आना बेतहाशा रूप से बढ़े। एक तो पहले से ही हर जगह लगने वाले जाम ने नाक में दम कर रखी है इसके अलावा बिहारी मंदिर भीड़ की विकरालता किसी से छिपी नहीं है। बिहारी जी के बाद में यह समस्या अब अन्य बड़े मंदिरों में भी होने लगी है। इस समस्या का एक ही निदान है वह यह कि ऐसे प्रयास होने चाहिए कि यहां काम से कम लोग आयें।
     जो श्रद्धालु है वह तो आएंगे ही किंतु मौज मस्ती और तफरी बाजी वाले यहां आकर वातावरण को और दूषित करते हैं। असल जरूरत तो यह है कि इन्हें प्रोत्साहित नहीं किया जाय।

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