Saturday, November 23, 2024
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संत शैलजा कांत के बीमार होने की बात सुनकर महान संत गया प्रसाद जी जोर से हंसे और ताली बजाने लगे

विजय कुमार गुप्ता

 मथुरा। विगत दिवस मेरी संत शैलजा कांत से फोन पर वार्ता चल रही थी, वे थोड़ी अस्वस्थता महसूस कर रहे थे किंतु बड़े प्रसन्न होकर कहने लगे कि चलो थोड़ा बहुत जो कुछ पाप हो गया होगा, वह कट जाएगा। उनकी इस बात से मैं चौंका और पूंछा कि वह कैसे? 
 इस पर उन्होंने एक बड़ा रोचक किस्सा सुनाया। दरअसल ब्रहम ऋषि देवराहा बाबा के गौलोक वास के पश्चात संत शैलजा कांत जब कभी महान संत गया प्रसाद जी का आशीर्वाद लेने गोवर्धन जाया करते थे। एक बार वे गया प्रसाद जी के साथ सत्संग कर रहे थे तब उन्होंने गया प्रसाद जी को बताया कि पिछले दिनों मैं काफी अस्वस्थ हो गया था, इसीलिए कुछ दिनों से नहीं आ सका। साथ ही शैलजा कांत जी ने बाबा गया प्रसाद जी से कहा कि अच्छा हुआ मैं अस्वस्थ हो गया और कष्ट पा लिया, क्योंकि कोई पाप हो गए होंगे, वे कट गए।
 संत शैलजा कांत की बात सुनते ही महान संत गया प्रसाद जी बड़े जोर से हंसे और ताली बजाने लगे तथा बोले कि बिल्कुल ठीक, किंतु इस बात को लोग समझते कहां हैं। अगर लोग इस बात को समझने लग जांय तो उनका कष्ट कम हो जाय। दो संतो के मध्य चला यह संवाद बड़ा ही प्रेरक है। यदि हम लोग जरा सा अस्वस्थ होने या अन्य प्रकार से आई विपदाओं को सहजता से लें तो फिर जीवन में निखार आने लगेगा तथा पाप कर्मों से बचने और हारी बीमारी तथा अन्य किसी भी प्रकार की आपदाओं से मुकाबला करने में बड़ी मदद मिलेगी।
 इस प्रसंग की चर्चा करते समय मुझे लगभग साढ़े तीन दशक पुरानीं एक घटना याद आ रही है। उन दिनों शैलजा कांत जी मथुरा के पुलिस कप्तान थे। एक बार वे काफी बीमार हो गए। मैं उन्हें देखने बंगले पर गया तो वे तथा मंजरी भावीजी इस बात पर मंथन कर रहे थे कि यह दंड किस अपराध पर मिला है? उन दोनों का निष्कर्ष यह था कि पिछले दिनों उन्होंने घर में चीटियों का प्रवेश रोकने के लिए डी.डी.टी. पाउडर की लक्ष्मण रेखा सी खींच दी थी जिसके फलस्वरूप काफी चीटियां मर गईं। मैंने यह देखा कि इन्हें बीमारी से अधिक चीटियों के मरने का मलाल सता रहा था।
 हम लोग छोटी-छोटी बातों पर भी बड़े विचलित होकर डॉक्टरों के यहां चक्कर लगाते व हाय हाय करते रहते हैं। मेरा यह मानना है कि बात बात पर डॉक्टरों के शरणागत होने के बजाय घरेलू और देसी उपचार के साथ साथ इस बात का भी चिंतन करते रहें कि आखिर ये परेशानियां क्यों आ रही है? क्या हमसे कोई अपराध हो रहा है? यदि अपने अपराध या पापों का चिंतन भी साथ साथ चलता रहे और उनका निदान भी होता रहे तो शायद मुसीबतें स्वत: ही कम होने लगेंगी। इस बात का मैं स्वयं भी अनुभव कर चुका हूं।
 अंत में एक बात और जो मैंने पिछले काफी समय पूर्व संत शैलजा कांत जी के मुंह से सुनी थी, मेरे लिए नई जानकारी भी थी। वह यह कि शरीर व्याधियों का घर है, यह तो पुरानीं कहावत है ही किंतु नई बात यह है कि हारी बीमारी आदि तरह तरह की आपदाओं की अधिक चर्चा नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे व्याधि देवता प्रसन्न होकर घरों में रम बस जाते हैं। बल्कि होना यह चाहिए कि इन सबको हल्के में ले कर डटकर मुकाबला करना अधिक श्रेयकर है। यदि हम संतवाणी पर मनन चिंतन कर उनके सुंदर विचारों को आत्मसात करें तो हमारा जीवन सुगंधित हो उठेगा।
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