उमेश अग्रवाल
पलवल जिले के उपमंडल होडल के सती दादी मंदिर स्थित है। यहां सैंकड़ों वर्षों से सती दादी की याद में मेले का आयोजन किया जाता है। मान्यता के अनुसार जो भी कोई महिला इस दिन मंदिर में आकर कोई भी मन्नत मांगती है। वह मन्नत अवश्य पूरी होती है इसलिए आस्था के इस मंदिर में पूजा अर्चना और मन्नत के लिए आने वालों में महिलाओं की संख्या अधिक होती है। सुबह चार बजे से लेकर देर शाम तक मंदिर में लोगों का तांता लगा रहता है। मनोरंजन के लिए यहां पर झूले भी लगाए जाते हैं। सती दादी के मंदिर के पास ही एक महल और छतरी भी बनी हुई है। जिसके बारे में कहा जाता है कि वर्षों पहले पंद्रहवी सदी में भरतपुर के महाराजा सूरजमल देहली पर कूच कर रहे थे और जब वह होडल के गांव पारली के पास पहुंचे तो यहां इस गांव की अप्रतिम सुंदर युवती को देखकर मोहित हो गए थे। महाराजा सूरजमल ने अपने अनुचरों से लडकी के बारे में जानकारी जुटाने के बाद शादी का प्रस्ताव उसके पिता के पास भेजा। प्रस्ताव के इंतजार में वह वहीँ पर रुक गए। देरी होते देख राजा ने खुद युवती के पिता काशीराम के घर जाकर अपना प्रस्ताव रखा। युवती का नाम किशोरी था। राजा सूरजमल की ख्याति उत्तरी क्षेत्र और मध्य क्षेत्र में काफी ख्याति फैली हुई थी। जिससे प्रभावित होकर काशीराम ने राजा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। सूरजमल ने उनकी याद में एक महल, तालाब और छतरी की निर्माण कराया था।
होडल घारम पट्टी की बुजुर्ग महिला संतों ने बताया यहां सती के दो मठ बने हुए हैं, जिनमें से एक की किंदवंती के अनुसार मानपुर गांव की लड़की थी जो यूपी में ब्याही थी। वह अपने ससुराल में पहले ही दिन जब कुएं से पानी लेने गई थी। घर पानी लेकर आई तो उसने अपने पति से पानी का घड़ा उतरवाने को कहा तो उसने मजाक में कहा की तेरा मटका होडल वाला जेलदार उतरवाएगा। मानपुर लड़की होडल आ गई। चौपाल पर बठे लोगों ने कहा कि कोई पानी का मटका उतरवाने को खड़ी है उसे कोई जाकर उतार दो तो उस ने कहा कि मेरा मटका जेलदार ही उतार सकता है और में उसी के घर में रहूंगी। कुछ दिनों बाद जेलदार की मौत हो गई तो उसको लोग अग्निमुख देने लगे लेकिन उस सती ने अग्नि देने से रोका और आप भी उस चिता में बैठ गई और उसके पैर से अग्नि प्रज्वलित हो गई और सती हो गई थी। तभी से यह मेला चला आ रहा है।
इस मेले का आयोजन इस क्षेत्र की चौबिसी करती है। इस चौबिसी में 48 गांव आते हैं। इस दिन हर गांव की महिला इस मंदिर में प्रसाद चढ़ाने, इसे नहलाने आती हैं। लोगों का मानना है कि अगर इसे किसी घर से प्रसाद चढ़ाने नहीं आया तो वह बीमार या कोई दूसरी घटना हो जाती है इसलिए इस क्षेत्र के हर घर से इसके दर्शन करने व प्रसाद चढ़ाने के लिए आते है। महिलाओं व बच्चों ने मेले में खिलोने आदि भी खरीदे और अपने लिए भी खरीददारी की। बच्चों ने इस मेले में झूलों पर झूलकर मेले का आनंद उठाया। इस तालाब में महिलाओं ने बच्चों को स्नान कराया। जिससे उनके चरम रोग दूर हो जाते हैं। यह मेला सुबह 4 बजे से शाम 8 बजे तक चलता है और इस मेले में भारी भीड़ लगी रहती है