Wednesday, April 30, 2025
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चित्र परिचयः संस्कृति विवि में आयोजित कार्यशाला में उपस्थित विशेषज्ञ वक्ता संस्कृति विवि में विशेषज्ञों ने छात्रों को बताए उद्यमी मानसिकता के गुर

मथुरा। संस्कृति विश्वविद्यालय के उद्यमी क्लब ने ‘उद्यमी मानसिकता: लचीलापन और अनुकूलनशीलता विकसित करना’ विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यशाला में उद्योग जगत के प्रतिष्ठित पेशेवर और विश्वविद्यालय के गणमान्य लोग उद्यमिता, लचीलापन और अनुकूलनशीलता पर बहुमूल्य जानकारी देने के लिए एक साथ आए।
कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में ईटन एडवाइजर्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक प्रहलाद त्रिपाठी ने विद्यार्थियों के बीच वित्त और स्टॉक ब्रोकिंग में अपने विशाल उद्योग अनुभव को साझा किया। उन्होंने उद्यमशीलता की यात्रा में वित्तीय साक्षरता, रणनीतिक जोखिम उठाने और दृढ़ता के महत्व पर चर्चा की। उनका सत्र विशेष रूप से दिलचस्प था क्योंकि उन्होंने वास्तविक दुनिया के व्यावसायिक परिदृश्यों को उद्यमशीलता की रणनीतियों से जोड़ा। वहीं यूनीकौशल की सह-संस्थापक और सीईओ सुश्री मृदुला त्रिपाठी ने महत्वाकांक्षी उद्यमियों के साथ अपने अनुभव और विशेषज्ञता साझा की। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्कृति विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डॉ.) एम. बी. चेट्टी ने की। उन्होंने इस अवसर पर छात्रों को भविष्य के करियर के लिए तैयार करने में उद्यमशीलता शिक्षा के महत्व पर जोर दिया। छात्रों ने वक्ताओं के साथ सक्रिय रूप से बातचीत की और उद्यमशीलता की चुनौतियों का सामना करने और नवाचार एवं अनुकूलनशीलता की मानसिकता को बढ़ावा देने के बारे में व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया। कार्यशाला के समन्वयक डॉ. गजेंद्र सिंह, सीईओ संस्कृति इंक्युबेशन सेंटर थे। प्रबंधन एवं वाणिज्य विद्यालय से डॉ. शांतम बब्बर और सुश्री रूबी देवी ने भी इस कार्यशाला के आयोजन में विशेष सहयोग दिया।
कार्यशाला के दौरान ज्ञानवर्धक चर्चाएं, संवादात्मक सत्र और विशिष्ट अतिथियों का सम्मान किया गया। इससे पूर्व प्लेसमेंट सेल की सुश्री ज्योति यादव ने विशिष्ठ अतिथियों का परिचय कराते हुए स्वागत के दौरान इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे अनुकूलनशीलता और लचीलापन सहित उद्यमी कौशल को केंद्रित शिक्षा और वास्तविक दुनिया के संपर्क के माध्यम से पोषित किया जा सकता है।। सत्र का समापन प्रबंधन एवं वाणिज्य विद्यालय के डीन प्रो. (डॉ.) मनीष अग्रवाल के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। कार्यक्रम को छात्रों और संकाय सदस्यों से जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली, जिससे यह संस्कृति विश्वविद्यालय में उद्यमशीलता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बन गया।कार्यक्रम में स्टूडेंट वेलफेयर विभाग के डीन डा. डीएस तोमर भी मौजूद रहे। कार्यक्रम के अंत में स्कूल ऑफ मैनेजमेंट एंड कॉमर्स के डीन (प्रो.) डॉ. मनीष अग्रवाल द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया।

संस्कृति विवि में आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने वाले संस्कृति स्कूल आफ नर्सिंग के विद्यार्थी एवं वक्ता।

मथुरा। संस्कृति स्कूल आफ नर्सिंग और जिला रोजगार कार्यालय के सम्मिलित प्रयासों से रोजगार के क्षेत्र में विवि के विद्यार्थियों को नए अवसर मिले हैं। संस्कृति स्कूल आफ नर्सिंग के विद्यार्थियों को इज़राइल, जापान और जर्मनी में उच्च वेतनमान पर नौकरी करने का अवसर मिला है।
संस्कृति विश्वविद्यालय के सभागार में संस्कृति स्कूल आफ नर्सिंग, संस्कृति प्लेसमेंट सेल और जिला रोजगार कार्यालय के समन्वित प्रयासों से विदेशों में रोजगार के अवसरों के प्रति एक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम की मुख्य वक्ता जिला रोजगार कार्यालय अधिकारी सुश्री सुगंधा जैन ने विशेष रूप से नर्सिंग के विद्यार्थियों को जानकारी देते हुए बताया कि आपने इस कोर्स में प्रवेश लेकर अपने सुनिश्चित भविष्य का चयन किया है। हमारे देश में ही नहीं विदेशों में नर्सिंग सेवाओं के लिए बड़ी संख्या में प्रशिक्षित और डिग्रीधारक विद्यार्थियों की जरूरत है। उन्होंने विद्यार्थियों को विश्वसनीय पोर्टल की सूची बताते हुए कहा कि यहां आप अपना रजिस्ट्रेशन कराकर विदेशों में बहुत ही अच्छे वेतनमान पर रोजगार पा सकते हैं। उन्होंने कार्यक्रम के दौरान ही विभिन्न वेबसाइट पर रोजगार कार्यालय के माध्यम से विद्यार्थियों के रजिस्ट्रेशन कराए। उन्होंने बताया कि इजराइल, जापान और जर्मनी में इस समय नर्सिंग के क्षेत्र में बहुत सारे अवसर हैं।
कार्यक्रम के दौरान संस्कृति नर्सिंग स्कूल के प्राचार्य डा. केके पाराशर ने बताया कि रोजगार कार्यालय मथुरा के सहयोग से 42 विद्यार्थियों ने विदेशों में नौकरी के लिए रजिस्ट्रेशन कराए हैं। डा. पाराशर ने बताया कि यह एक ऐसा क्षेत्र हैं जहां कोर्स करने के बाद शत-प्रतिशत रोजगार की संभावना होती है। आपका परिश्रम और समर्पण आपको बहुत आगे तक ले जा सकता है। उन्होंने कहा कि भारत में नर्सिंग के क्षेत्र में प्रशिक्षित लोगों की बड़ी जरूरत है लेकिन विदेशों में उच्च वेतनमान के कारण विद्यार्थियों का वहां जाने के प्रति विशेष आकर्षण रहता है।
कार्यक्रम के मध्य संस्कृति प्लेसमेंट सेल के जयवर्धन नगाइच ने विभिन्न देशों में रिक्तियों की जानकारी देते हुए बताया कि संस्कृति विवि के बच्चे किस-किस देश में नौकरी कर रहे हैं। कार्यक्रम में मुकुल, अमनदीप दुबे भी मौजूद रहे। अंत में संस्कृति स्कूल आफ इंजीनियरिंग की डा. रीना रानी से सभी वक्ताओं का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया।

राजीव एकेडमी के छात्र-छात्राएं एआई और ऑटोमेशन के अंतर से हुए रूबरूएआई और ऑटोमेशन तकनीकें व्यवसाय के कुशल संचालन में मददगार

मथुरा। एआई और ऑटोमेशन दोनों ही महत्वपूर्ण तकनीकें हैं जो व्यवसायों के कुशल संचालन तथा उत्पादकता बढ़ाने में मददगार हैं। एआई मशीनों को मानव जैसी सोच और निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करती है जबकि ऑटोमेशन मानव श्रम को कम करने और कार्यों को स्वचालित करने पर केन्द्रित है। इन तकनीकों को एक साथ मिलाकर संगठनों को और भी अधिक कुशल तथा उत्पादक बनाया जा सकता है। यह बातें इन्फोटेक प्रा.लि. के निदेशक मनु कपूर ने राजीव एकेडमी फॉर टेक्नोलॉजी एण्ड मैनेजमेंट के छात्र-छात्राओं को बताईं।
आर्टिफिशियल इण्टेलिजेंसी एण्ड ऑटोमेशन विषय पर बोलते हुए अतिथि वक्ता मनु कपूर ने कहा कि यह मशीनों को मनुष्यों की तरह सोचने और काम करने में सक्षम बनाता है। इसके कई फायदे हैं जैसे कि यह बड़ी मात्रा में डेटा को प्रोसेस कर सकता है। यह डेटा से सीखता है और निर्णय लेता है तथा यह गतिशील वातावरण में भी काम कर सकता है। उन्होंने कहा कि एआई ऑटोमेशन का उपयोग करके व्यवसायों को अपनी प्रक्रिया को स्वचालित करके मानव त्रुटियों को कम करके दक्षता में सुधार करने में मदद मिल सकती है।
श्री कपूर ने कहा कि एआई व ऑटोमेशन के उपयोग से व्यवसायों को अपनी उत्पादकता में सुधार करने में मदद मिल सकती है क्योंकि वे कम समय में अधिक काम कर सकते हैं। इसके प्रयोग से व्यवसायों को मानव कार्यबल से राहत मिल सकती है। एआई का उपयोग करके व्यवसायों के डेटा का विश्लेषण करके और बेहतर निर्णय लेने में मदद मिल सकती है। छात्र-छात्राओं को सम्बोधित करते हुए इनोवर्क इन्फोटेक के सीनियर ट्रेनिंग आफिसर नितिन कुमार ने कहा कि एआई और ऑटोमेशन दोनों ही तकनीक महत्वपूर्ण हैं। इनका अधिक से अधिक प्रयोग कर व्यवसाय को अधिक कुशल, उत्पादक और प्रतिस्पर्धी बनाया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि एआई का उपयोग स्वचालन को बेहतर बनाने के लिए किया जा सकता है। इससे मशीनें जहां जटिल कार्यों को कर सकती हैं वहीं मानव हस्तक्षेप की आवश्यकता भी कम हो जाती है। उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इण्टेलिजेंसी के निरन्तर कार्यान्वयन से व्यवसायों को अपनी उत्पादकता में सुधार करने में मदद मिल सकती है। यह ग्राहक-सामना करने वाले उद्योगों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञों ने छात्र-छात्राओं को जहां मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग के अन्तर से रूबरू कराया वहीं डीप लर्निंग और न्यूरल नेटवर्क पर भी विस्तार से जानकारी दी।
कार्यक्रम में छात्र-छात्राओं ने डेटा माइनिंग और बिग डेटा की जानकारी भी जुटाई। इस अवसर पर एसएमओसी सोशल मीडिया के बारे में छात्र-छात्राओं को समाधान देते हुए अनालिटिक्स और क्लाउड पर विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया गया। विशेषज्ञों ने अंतिम वर्ष के छात्र-छात्राओं को अपने प्रोजेक्ट बनाने के लिए कई प्रकार के सम्भावित टॅापिक्स बताए गए। इतना ही नहीं उन्हें बैंकिंग सेक्टर में करिअर निर्माण हेतु महत्वपूर्ण टिप्स भी दिए। अंत में संस्थान के निदेशक डॉ. अभिषेक सिंह भदौरिया ने अतिथि वक्ताओं का छात्र-छात्राओं को बहुमूल्य समय देने के लिए आभार माना।
चित्र कैप्शनः राजीव एकेडमी के छात्र-छात्राओं को एआई और ऑटोमेशन की जानकारी देते हुए इन्फोटेक प्रा.लि. के निदेशक मनु कपूर।

कुत्तों पर अत्याचार करने वाले भी कुत्ते और मूक बनकर तमाशबीन बने रहने वाले तो महाकुत्ते

मथुरा। सभी जानते हैं कि कुत्ता वफादार जानवर है। वह मालिक की खातिर अपनी जान की बाजी लगाने से भी पीछे नहीं हटता। यह कुत्ते रात रात भर जाग कर हम लोगों की पहरेदारी करते हैं। पुराने समय से ही यह चलन रहा है कि पहली रोटी गाय की और आखिरी रोटी कुत्ते की, लेकिन बड़ी दुखद और शर्मनाक बात यह है कि आजकल इन्हीं के साथ न सिर्फ क्रूरता हो रही है बल्कि इनकी प्रजाति को ही समाप्त करने का कुचक्र रचा जा रहा है।
     मेरा मानना है कि कुत्तों पर अत्याचार करने वाले तो कुत्ते हैं ही पर मूक बनकर तमाशबीन बने रहने वाले हम लोग महाकुत्ते हैं। किसी को बुरा लगे या भला किंतु यह बात एकदम खरी है। आजकल नगर निगम द्वारा इन निरीह प्राणियों के ऊपर जो अत्याचार किए जा रहे हैं, वह अक्षम्य हैं।
     इन कुत्तों पर अत्याचारों का सिलसिला अभी शुरू नहीं हुआ है यह तो लंबे समय यानी कई माह से चल रहा है। महाकुत्तों वाली श्रेणी में तो कुछ कुछ मैं अपने को भी मानता हूं, क्योंकि पिछली गर्मियों में मैंने कुत्तों को जाल में दबोच कर नगर निगम के सफाई कर्मियों को ले जाते हुए देखा था। तब से अब जाकर मेरा मुंह खुला है।
     जब मैंने होली गेट के पास कुत्तों को सुबह-सुबह जाल में फंसाते देखा तो जानकारी करने पर पता चला कि उनकी नसबंदी की जाएगी और बाद में जहां से पकड़ा जा रहा है वहीं लाकर छोड़ा जाएगा। तमाम तरह की समस्याओं के चलते में खाली सोचता ही रह गया किया कुछ नहीं। फिर कुछ दिन बाद हमारे निवास “नवल नलकूप” से मेरी अनुपस्थिति में कुत्तों के पूरे झुंड को पड़कर सुबह-सुबह ले गए सिर्फ दो कुतियाओं को कुछ लोगों ने छुपा लिया वह बच गईं बाकी सभी चले गए।
     रोजाना सुबह सूर्योदय से पूर्व गेट खुलने से पहले कुत्तों का झुंड हमारे दरवाजे पर खड़ा मिलता था क्योंकि उन्हें टोस्ट खिलाये जाते थे किंतु अब सिर्फ दो कुतिया ही आती हैं। इससे यह दावा झूठा सिद्ध हो गया कि जहां से कुत्तों को पकड़ कर ले जाया जाता है। नसबंदी के बाद उन्हें वापस वहीं छोड़ा जाता है।
     कुछ दिन पूर्व मैंने अपने संवाददाता दिनेश कुमार को इस बात का पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी कि पकड़ कर ले जाने के बाद कुत्तों को कहां रखा जाता है और उनकी क्या गति होती है? दिनेश जी ने सहायक नगर आयुक्त श्री रामजी लाल जो इस कार्य के नोडल अधिकारी हैं, से बात की और पूंछा कि कुत्तों को कहां रखा जाता है? इस पर उन्होंने बताया कि मुझे नहीं पता। हमने तो एक एन.जी.ओ. (प्राइवेट संस्था) को यह जिम्मेदारी दे रखी है। राम जी लाल जी ने एक चिकित्सक का फोन नंबर दे दिया तथा कहा कि इनसे पता कर लो।
     जब चिकित्सक से बात की तो उन्होंने बताया कि डी.एम. निवास के पिछवाड़े में डेयरी फार्म के निकट यमुना किनारे पर इनका ठिकाना है। दिनेश जी जब वहां पहुंचे तो पता चला कि यहां का ठिकाना तो अभी निर्माणाधीन है। इस समय तो कुत्ते बाद के निकट राधा टाउन कॉलोनी के एक बाड़े में हैं। इसके बाद दिनेश जी राधा टाउन पहुंचे तो वहां कुत्तों की बड़ी दुर्गति हो रही थी। कुछ कुत्ते जाल में फंसे छटपटा रहे थे तथा कुछ एक बड़े पिंजरे में भयभीत से पड़े हुए थे। वहां के लोगों ने बताया कि कभी-कभी यह कुत्ते पिंजरे के अंदर आपस में बुरी तरह लड़ते झगड़ते हैं और घायल भी हो जाते हैं।
     इस सब घटनाक्रम से अंदाज लगाया जा सकता है कि कुत्तों के साथ कितनी क्रूरता हो रही है। कैसे इन्हें खिलाया पिलाया जाता होगा? क्या होता होगा भगवान ही जाने। जब हमारे घर के पास के कुत्तों का छ: माह से अभी तक आता पता नहीं तो फिर मथुरा वृंदावन क्षेत्र के सैकड़ो हजारों कुत्तों की क्या गति हुई होगी? कितने मरे होंगे कितने जिंदे बचे होंगे? क्या-क्या हुआ होगा? और क्या-क्या नहीं हुआ होगा? इस सब का अंदाजा लगाया जा सकता है। कहने का मतलब है कि सब कुछ अंधेरे में है और अखबारों में खबर ऐसी छपवाई जाती हैं जैसे इनकी मेहमानों की तरह खातिरदारी होती है और डॉक्टरों व कर्मचारियों की टीम हर समय कुत्तों की सेवा में लगी रहती है।
     अब इस सब माथा पच्ची से अलग हटकर मैं यह पूछना चाहता हूं कि कुत्तों को पड़कर उनकी नसबंदी का क्या औचित्य है? कुछ लोग कहेंगे कि कुत्ते बहुत ज्यादा हो गए हैं, लोगों को काट भी लेते हैं। आदि आदि। मैं पूछना चाहता हूं कि क्या इंसानों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी नहीं बढ़ रही है? क्या यह लोग हिंसक होकर मार काट लूटपाट आदि घिनौने अपराध नहीं कर रहे? फिर तो इंसानों को भी पकड़ पकड़ कर उनकी भी नसबंदी होनी चाहिए।
     बताया गया है कि इन कुत्तों की नसबंदी के नाम पर प्रति कुत्ता लगभग एक हजार व्यय होता है। इसमें कितना खर्च होता होगा और कितने में बंदर बांट होती होगी यह तो राम जाने। पर इतना जरूर है कि इन बेचारों के साथ यह जघन्यता अक्षम्य है। इन बेजुबान निरीह प्राणियों के साथ यह क्रूर अत्याचार मथुरा वृंदावन ही नहीं देशभर में हो रहे हैं।
     ऐसा लगता है कि कुत्ता विरोधी विचारधारा वाले लोग इस प्रजाति को ही समाप्त करना चाहते हैं। मेरी सोच यह है कि जो लोग कुत्तों की बहु संख्या व उनके आक्रामक होने के नाम पर जुल्म ढाने के समर्थक हैं, उन्हें सबसे पहले अपनी और अपने परिवार के सभी सदस्यों की नसबंदी कर लेनी चाहिए क्योंकि इंसान भी तो कुकुरमुत्ते की तरह उगते चले जा रहे हैं, उनमें भी तो कुछ हिंसक होकर जघन्य अत्याचार कर रहे हैं।
     अंत में यह भी कहूंगा कि जो कुत्ता विरोधी विचारधारा के लोग हैं और उन पर हो रहे अत्याचारों में सहयोगी हैं। अगले जन्म में वे जरूर कुत्ते बनेंगे और जैसे जुल्म इन कुत्तों पर हो रहे हैं उससे भी अधिक जुल्म उन पर होंगे।
     एक बात और कहनी है वह यह कि अगर हम सभी लोग बगैर तनखा वाले इन पहरेदारों को कुछ न कुछ खिलाते रहेंगे तो फिर कोई भी कुत्ता हिंसक नहीं होगा। ये भूख प्यास से भी चिड़चिड़े और हिंसक हो जाते हैं। हम सभी को मिल जुल कर कुत्तों को नसबंदी के नाम पर पकड़ कर उन पर अत्याचार करने का विरोध करना चाहिए ना कि अपनी जुबान पर ताला लगा तमाशबीन बने रहकर महाकुत्ता वाली श्रेणी में अपना नाम दर्ज कराना चाहिए।

वार्षिक शैक्षणिक परिणाम और यूकेजी स्नातक समारोह में झूमे बच्चे

वृंदावन। सारंग हाई इम्पैक्ट स्कूल, वृंदावन ने गर्व के साथ वार्षिक शैक्षणिक परिणाम की घोषणा की और एक भावपूर्ण समारोह में अपर किंडर गार्डन (यूकेजी) से अपने सबसे कम उम्र के विद्यार्थियों के स्नातक होने का जश्न मनाया। यह कार्यक्रम बच्चों, उनके परिवारों और स्कूल समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।
सभी बच्चों को उनके शैक्षणिक परिणाम, एक पदक और उपलब्धि का प्रमाण पत्र दिया गया। खास बात यह थी कि सभी बच्चों को उनके विशेष गुणों के अनुसार उपाधियाँ दी गईं, जिससे उन्हें प्रेरणा मिली और हर चेहरे पर मुस्कान आ गई।
स्नातक समारोह भी हंसी, खुशी के आंसुओं और उपलब्धि की भावना से भरा एक जीवंत और आनंदमय अवसर था। यूकेजी की स्नातक कक्षा ने अपने स्नातक गाउन और टोपी पहने हुए आकर्षक प्रदर्शनों की एक श्रृंखला के माध्यम से अपनी वृद्धि और सीखने का प्रदर्शन किया।
स्नातक दिवस समारोह की शुरुआत कार्यक्रम के परिचय और निदेशक खुशबू सोढ़ी, मार्तंड उपाध्याय के माता-पिता, मेजर जनरल लायन सुभाष ओहरी, उनके समकक्ष, विशेष आमंत्रितों और प्यारे माता-पिता के स्वागत के साथ हुई। कार्यक्रम में बच्चों ने नृत्य, भाषण और कविताओं और श्लोकों के पाठ से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। प्रत्येक प्रदर्शन ने यूकेजी में अपने कार्यकाल के दौरान उनके द्वारा अर्जित कौशल और ज्ञान को दर्शाया।
फिर विशेष आमंत्रित, मेजर जनरल लायन सुभाष ओहरी को युवा स्नातकों को सम्मानित करने के लिए मंच पर आमंत्रित किया गया। उन्होंने उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए स्नातकों और उनके माता-पिता को बधाई देते हुए कहा कि हम अपने बच्चों की उपलब्धियों, विकास और यूकेजी वर्ष में उनके द्वारा बनाई गई अद्भुत यादों का जश्न मना रहे हैं। हमने उन्हें सीखते, हंसते और आत्मविश्वासी और जिज्ञासु शिक्षार्थी बनते देखा है जो इन बच्चों के प्रदर्शन में बहुत स्पष्ट है। हम सभी बच्चों को अपनी शुभकामनाएं देते हैं।
समारोह का मुख्य आकर्षण रोल ऑफ ऑनर्स, सर्टिफिकेट ऑफ अचीवमेंट, मेडल और स्मृति चिन्हों का वितरण किया गया। प्रत्येक बच्चा मंच पर आया और दर्शकों की तालियों की गड़गड़ाहट के साथ अपने प्रमाण पत्र प्राप्त किए। माता-पिता ने भी सत्र के दौरान अपने बच्चों के पालन-पोषण के बारे में अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं और कहा कि स्कूल बहुत बढ़िया काम कर रहा है और भविष्य के प्रयासों में स्कूल को शुभकामनाएँ दीं। फिर सभी बच्चों ने एक ग्रेजुएशन शपथ ली जिसमें कहा गया कि वे निरंतर विकास और खोज की यात्रा पर निकलने का संकल्प लेते हैं और सभी के प्रति दयालु होने और नई चीजें सीखते रहने का वादा करते हैं। उन्होंने हमेशा सीखने, चमकने, मुस्कुराने और खुश रहने का भी संकल्प लिया। उन्होंने आगे आजीवन सीखने के लिए प्रतिबद्ध रहने और अपने आस-पास की दुनिया में हमेशा सकारात्मक योगदान देने का प्रयास करने का वादा किया। कार्यक्रम का समापन वोट ऑफ थैंक्स, एक ग्रुप फोटो सेशन और जलपान के साथ हुआ। माता-पिता, शिक्षकों और छात्रों ने खुशी के पल साझा किए और इस खास दिन की यादों को संजोया।
‘सारंग’ अपने शिक्षार्थियों के लिए एक पोषण और प्रेरणादायक वातावरण प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है, जो उनके भविष्य की शैक्षणिक सफलता के लिए एक मजबूत नींव रखता है। यह समारोह समग्र विकास के प्रति स्कूल के समर्पण और प्रत्येक बच्चे की अद्वितीय क्षमता के उत्सव का प्रमाण है।

जल ही जीवन का आधार, इसके बिना जीवन असम्भवजी.एल. बजाज की टीम ने ग्रामीणों को दी जल संरक्षण की जानकारी

मथुरा। जल जीवन का आधार है, इसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। पीने योग्य पानी की लगातार होती कमी समूचे जनजीवन के लिए चिन्ता का विषय है। यदि हम अभी से सचेत नहीं हुए तो हम सब मुश्किल में पड़ जाएंगे। पानी को बनाया नहीं बल्कि बचाया अवश्य जा सकता है। यह बातें अकबरपुर के लोगों को जी.एल. बजाज ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस की टीम ने अकबरपुर के ग्रामीणों को बताईं।
विश्व जल दिवस पर जी.एल. बजाज कॉलेज की टीम ने अकबरपुर गांव में जल संरक्षण को लेकर एक व्यापक जागरूकता अभियान चलाया। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य ग्रामीणों को जल संरक्षण के महत्व से अवगत कराना तथा उन्हें जल बचाने के उपायों के प्रति जागरूक करना था। पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. वजीर सिंह और सह आचार्य डॉ. राजीव कुमार सिंह ने ग्रामीणों को जल संरक्षण के विभिन्न पहलुओं की विस्तार से जानकारी दी। पर्यावरण विशेषज्ञों ने ग्रामीणों को जल संकट की गम्भीरता से परिचित कराने के साथ ही इसके समाधान भी सुझाए।
डॉ. वजीर सिंह ने वर्षा जल संचयन की प्रक्रिया को विस्तार से समझाया और बताया कि किस प्रकार हम अपने घरों और खेतों में वर्षा जल संचित करके भूजल स्तर को बढ़ा सकते हैं। उन्होंने पानी की बर्बादी रोकने के उपाय भी सुझाए, जैसे कि टपकते नलों को ठीक करना, अधिक पानी खर्च करने वाले तरीकों से बचना और जल पुनर्चक्रण (रीसाइक्लिंग) को अपनाना।
डॉ. राजीव कुमार सिंह ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जल संकट के समाधान प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि जल प्रदूषण भी एक गंभीर समस्या है, जिससे जल की गुणवत्ता प्रभावित होती है और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उन्होंने जैविक और रासायनिक कचरे के सही निपटान और पर्यावरण-अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाने पर जोर दिया। विशेषज्ञों ने उपस्थित लोगों को जल संरक्षण की शपथ दिलाई और आग्रह किया कि वे अपने दैनिक जीवन में जल बचाने की आदतें अपनाएं। उन्होंने ग्रामीणों को प्रेरित किया कि वे अपने घरों में कम पानी खर्च करें, नदियों और तालाबों को स्वच्छ रखें तथा जल-संरक्षण से जुड़ी आधुनिक तकनीकों को अपनाने का प्रयास करें।
इस जागरूकता अभियान में जी.एल. बजाज समूह के लैब असिस्टेंट दिनेश, छात्र ओजस दुबे, आयुष शुक्ला, यश गर्ग और प्रखर पांडेय ने स्वयंसेवक की भूमिका निभाई। उन्होंने ग्रामीणों को जल संरक्षण से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां दीं और अभियान के संचालन में सक्रिय योगदान दिया। स्वयंसेवकों ने पोस्टर, चार्ट और प्रजेंटेशन के माध्यम से भी जल संकट से निपटने के प्रति लोगों को जागरूक किया।
यह अभियान अकबरपुर के लोगों के लिए शिक्षाप्रद और प्रेरणादायक रहा। ग्रामीणों ने इस विषय पर गहरी रुचि दिखाई और जल संरक्षण को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लिया। इस पहल से यह स्पष्ट हुआ कि यदि हम सभी मिलकर जल बचाने का प्रयास करें तो जल संकट को काफी हद तक कम किया जा सकता है। संस्थान की निदेशक प्रो. नीता अवस्थी ने कहा कि जी.एल. बजाज का उद्देश्य युवा पीढ़ी को शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक दायित्वों के प्रति प्रोत्साहित करना भी है। इस जागरूकता अभियान से ग्रामीणों के बीच जल संरक्षण के प्रति जरूर सकारात्मक सोच विकसित हुई होगी। प्रो. अवस्थी ने समाज और राष्ट्र की तरक्की के लिए ऐसे जागरूकता अभियानों को जरूरी बताया।
चित्र कैप्शनः अकबरपुर के लोगों को जल संरक्षण की जानकारी देती जी.एल. बजाज कॉलेज की टीम।

पं शिवचरण लाल शर्मा के 127 वे जन्मदिन परमथुरा में पत्रकारिता के जनक एवम क्रांतिकारी पंडित शिवचरण लाल शर्मा।

मथुरा में पत्रकारिता के जनक स्व पंडित शिवचरण लाल शर्मा का जन्म सन 1898 में उत्तर प्रदेश के एटा जनपद के नगला डरु ग्राम में हुआ था। अपने बड़े भाई पंडित रामचरण लाल शर्मा जिन्हें सन 1909 में राजद्रोह के आरोप में 30 साल काला पानी की सजा हुई थी और अंडमान भेज दिया गया था, का अनुसरण करते हुए पंडित शिवचरण लाल शर्मा भी देश के स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गए। वह सरदार भगत सिंह और राम प्रसाद बिस्मिल जैसे महान क्रांतिकारियों के संपर्क में आए। सन 1918 में पंडित शिवचरण लाल शर्मा और सरदार भगत सिंह दिल्ली में एक जब्त पुस्तक -“अमेरिका को स्वाधीनता कैसे मिली” को बांट रहे थे तभी किसी मुखबिर ने पुलिस को सूचना दे दी। पुलिस को देखते ही शर्मा जी ने सरदार भगत सिंह को इशारा करके भगा दिया और खुद गिरफ्तार हो गए। 1 सितंबर 1919 को पंडित शिवचरण लाल शर्मा को मैनपुरी सड़यंत्र केस में पांच साल की हुई। वह 1924 में रिहा हुए। सन 1930 में अजमेर में बंदी बनाए गए और जनवरी 1931 को रिहा हुए। सन 1932 में आई. पी. सी. की धारा 108 के अंतर्गत एक वर्ष की सजा हुई ये सजा पंडित जी ने फैजाबाद जेल में काटी थी। वह स्व. गणेश शंकर विद्यार्थी के क्रांतिकारी पत्र “प्रताप” में सन 1918 में रिपोर्टर तथा 1924 में उसके संपादकीय विभाग में उप संपादक भी रहे। पंडित जी आगरा से प्रकाशित समाचार पत्र सैनिक के प्रथम मुद्रक, प्रकाशक एवम उप संपादक रहे थे। इसी दौरान उनका नाम “काकोरी सडयंत्र केस” में आ गाया और गिरफ्तारी से बचने के लिए वह अपने बड़े भाई पंडित रामचरण लाल शर्मा जिन्होंने अंडमान में “काला पानी” की सजा काटकर फ्रांसीसी शासित पांडचेरी में शरण ले ली थी के पास पहुंच गए और वहीं पर अपनी फरारी काटने लगे। वरना उन्हें या तो आजीवन कारावास की सजा होती अथवा गर्दन लंबी हो जाती।
स्व. पंडित शिवचरण लाल शर्मा ने देश की आजादी के बाद पत्रकारिता को ही अपनी जीविकोपार्जन का साधन बनाया। वह मथुरा से अनेक हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू समाचार पत्रों के संवाददाता रहे। वह मथुरा में टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, दैनिक हिंदुस्तान, अमृत बाजार पत्रिका, नेशनल हेराल्ड, नवजीवन, हिंदुस्तान स्टेंडर्ड, उर्दू के मिलाप, नॉर्दर्न इंडिया पत्रिका आदि अनेक समाचार पत्रों के प्रतिनिधि/ संवाददाता रहे। वह मथुरा में जिला पत्रकार संघ के अध्यक्ष के अलावा भारत सेवक समाज, हिंदी साहित्य सम्मेलन उत्तर प्रदेश, रोटरी क्लब आदि लगभग दो दर्जन संस्थाओं/समितियों से संबद्ध रहे। उन्होंने मथुरा में कृष्णापुरी हाउसिंग सोसाइटी की भी स्थापना की और पांच कोठियों का निर्माण भी कराया जिन्हें उनकी लायक संतानों ने खुर्द बुर्द कर दिया।
क्रांतिकारी स्व. पंडित शिवचरण लाल शर्मा से ब्रिटिश सरकार कितनी खोफजदा थी इसकी जानकारी ब्रिटिश इंटेलिजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर की पुस्तक “कम्यूनिश्म इन इंडिया” में पंडित शिवचरण लाल शर्मा को ब्रिटिश सरकार के लिए बहुत ही खतरनाक व्यक्ति बताया।
यह अति करुणा और वेदना का विषय है कि मथुरा के पत्रकारों ने इस महान क्रांतिकारी को बिल्कुल भुला दिया और उनका नाम तक नहीं लेते। भारत सरकार ने न तो इनके नाम पर कोई डाक टिकट ही जारी किया और नाही कोई उनके जन्म स्थान पर कोई स्मारक ही बनाया। और पूरी तरह से उनके देश के प्रति सेवा और बलिदान को पूरी तरह भुला दिया है।

स्वस्थ-सुखद जीवन के लिए मौखिक स्वास्थ्य की देखभाल सबसे जरूरीके.डी. डेंटल कॉलेज एक महीने चलाएगा हैप्पी माउथ इज हैप्पी माइंड विषय पर अभियानप्रबंध निदेशक मनोज अग्रवाल ने किया जागरूकता अभियान का शुभारम्भ

मथुरा। मुंह, शरीर और मन सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। हम अपने मौखिक स्वास्थ्य की देखभाल कर स्वस्थ और सुखद जीवन जी सकते हैं। अगर हम अपने दांतों और मसूड़ों की देखभाल नहीं करते तो हम न केवल दांतों की सड़न या मसूड़ों की बीमारी जैसी समस्याओं का जोखिम उठाते हैं बल्कि अपने आत्मविश्वास, रिश्तों और यहां तक कि मस्तिष्क के कामकाज को भी प्रभावित कर सकते हैं। यह बातें के.डी. डेंटल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल और पियरे फॉचर्ड अकादमी के सहयोग से विश्व मौखिक स्वास्थ्य दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में विशेषज्ञ दंत चिकित्सकों ने छात्र-छात्राओं और दंत पीड़ितों को बताईं।
विश्व मौखिक स्वास्थ्य दिवस पर आर.के. एज्यूकेशनल ग्रुप के प्रबंध निदेशक मनोज अग्रवाल ने के.डी. डेंटल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल द्वारा “हैप्पी माउथ इज हैप्पी माइंड” विषय पर चलाए जाने वाले जागरूकता अभियान का शुभारम्भ करते हुए कहा कि अच्छा मौखिक स्वास्थ्य हमें अपने बारे में बेहतर महसूस करने, दूसरों के साथ अधिक सहजता से बातचीत करने तथा अधिक आनंददायक जीवन जीने में मदद करता है। इस अवसर पर डीन और प्राचार्य डॉ. मनेष लाहौरी ने बताया कि इस साल की थीम “हैप्पी माउथ इज हैप्पी माइंड” यानी खुश मुंह ही खुश दिमाग है।
डॉ. लाहौरी ने बताया कि जनपद मथुरा के लोगों को मौखिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के लिए के.डी. डेंटल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल फॉचर्ड अकादमी के सहयोग से 20 मार्च से 20 अप्रैल तक एक अभियान चला रहा है। अभियान इस बात पर जोर देगा कि कैसे एक स्वस्थ मुंह समग्र खुशी में योगदान दे सकता है। प्राचार्य डॉ. लाहौरी ने कहा कि एक स्वस्थ मुस्कान आपको अपने बारे में अच्छा महसूस करने में मदद कर सकती है। जब आप अपने दांतों से खुश होते हैं, तो आप बिना किसी चिन्ता के मुस्कुराने और सामाजिक मेल-जोल बढ़ाने में ज्यादा सक्षम होते हैं। अपने मौखिक स्वास्थ्य का ध्यान रखने का अर्थ है कि आप दूसरों के साथ अधिक आत्मविश्वास से बातचीत कर सकते हैं और बेहतर सामाजिक जीवन का आनंद ले सकते हैं।
उन्होंने बताया कि के.डी. डेंटल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल द्वारा 20 अप्रैल तक विभिन्न गतिविधियों डेंटल कैम्प, प्रतियोगिताएं, शपथ समारोह, मौखिक स्वास्थ्य शिक्षा, मौखिक स्वास्थ्य पैक का वितरण, वृद्धाश्रमों में मौखिक स्वास्थ्य देखभाल, मौखिक स्वास्थ्य वार्ता आदि के माध्यम से लोगों को मौखिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया जाएगा। प्रो. (डॉ.) नवप्रीत कौर तथा प्रो. (डॉ.) अनुज गौर ने बताया कि स्वस्थ मुंह आपको बिना किसी परेशानी के खाने, बोलने और हंसने में सक्षम बनाता है। जब आपको मौखिक स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में चिन्ता करने की ज़रूरत नहीं होती तब आप जीवन के छोटे-छोटे पलों का आनंद लेने पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
मुस्कुराने का मतलब सिर्फ खुश दिखना नहीं है, यह वास्तव में आपको खुश महसूस करने में मदद करता है। मुस्कुराने से मस्तिष्क में ‘अच्छा महसूस कराने वाले’ रसायन निकलते हैं, जिससे तनाव कम होता है और आपका मूड अच्छा होता है। दंत विशेषज्ञों ने बताया कि खराब मौखिक स्वास्थ्य अवसाद, चिन्ता और तनाव जैसी समस्याओं का भी कारण बन जाता है जबकि स्वस्थ मुंह आपको भोजन का आनंद लेने, भोजन को बेहतर तरीके से चबाने, ताजा सांस बनाए रखने, दर्द तथा दांतों के नुकसान से बचने में मदद करता है। स्वस्थ मुंह और दिमाग को बनाए रखने के लिए हमें नियमित रूप से ब्रश करना चाहिए।
चित्र कैप्शनः “हैप्पी माउथ इज हैप्पी माइंड” विषय पर चलाए जाने वाले जागरूकता अभियान का शुभारम्भ करते हुए आर.के. एज्यूकेशनल ग्रुप के प्रबंध निदेशक मनोज अग्रवाल, साथ में हैं डीन और प्राचार्य डॉ. मनेष लाहौरी व अन्य चिकित्सक।

आईसीटी अकादमी द्वारा इंफोसिस के सहयोग से संस्कृति विश्वविद्यालय में संचालित 15 दिवसीय तकनीकी प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान विशेष दक्षता हासिल करने वाले विद्यार्थियों को प्रमाणपत्र प्रदान किए गए।

संस्कृति विवि के विद्यार्थियों को आईसीटी, इंफोसिस ने किया प्रशिक्षित
मथुरा। संस्कृति विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग और सूचना प्रौद्योगिकी स्कूल के तत्वाधान में आईसीटी अकादमी, इंफोसिस द्वारा दिए जा रहे 15 दिवसीय पायथन प्रोग्रामिक प्रशिक्षण में विद्यार्थियों ने साफ्ट स्किल और तकनीकी के क्षेत्र में उन्नत ज्ञान और कौशल हासिल किया। प्रशिक्षण प्रोग्राम द्वारा 65 विद्यार्थियों को बुनियादी से लेकर उन्नत अवधारणाओं तक आवश्यक पायथन प्रोग्रामिंग कौशल से लैस किया गया।
आईसीटी अकादमी ने इंफोसिस के सहयोग से संस्कृति विश्वविद्यालय में संचालित 15 दिवसीय तकनीकी प्रशिक्षण कार्यक्रम में तीन दिन का सॉफ्ट स्किल प्रशिक्षण और 12 दिन का तकनीकी पायथन प्रशिक्षण शामिल था। इसमें प्रतिभागियों को पेशेवर विकास और तकनीकी विशेषज्ञता दोनों के लिए प्रशिक्षण का एक व्यापक सेट प्रदान किया गया। सॉफ्ट स्किल के लिए सुश्री झंकार गुप्ता और पायथन प्रोग्रामिंग के लिए उत्पल कर के मार्गदर्शन में, प्रतिभागियों ने अपने संचार, नेतृत्व, समय प्रबंधन और समस्या-समाधान क्षमताओं को निखारा, साथ ही साथ पायथन प्रोग्रामिंग में व्यावहारिक अनुभव प्राप्त किया। कार्यक्रम में डेटा संरचना, ऑब्जेक्ट-ओरिएंटेड प्रोग्रामिंग, फ़ाइल हैंडलिंग, वेब डेवलपमेंट और डेटा विश्लेषण जैसी आवश्यक पायथन कंसेप्ट (अवधारणाएँ) शामिल थीं। पाठ्यक्रम के अंत तक, प्रतिभागियों को आज के प्रतिस्पर्धी नौकरी बाजार में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए आवश्यक पारस्परिक कौशल और तकनीकी ज्ञान दोनों से लैस किया गया।
तीन दिनों के साफ्ट स्किल प्रशिक्षण के दौरान, सुश्री झंकार गुप्ता के आकर्षक और संवादात्मक सत्रों ने प्रतिभागियों को उनके पेशेवर रवैये, टीम वर्क क्षमताओं और प्रस्तुति कौशल को बेहतर बनाने में मदद की, जो सभी कॉर्पोरेट वातावरण में महत्वपूर्ण हैं। पायथन प्रोग्रामिंग पर केंद्रित कार्यक्रम के दूसरे खंड का नेतृत्व विशेषज्ञ तकनीकी प्रशिक्षक उत्पल कर ने किया। 12 दिनों की अवधि में, उन्होंने डेटा संरचनाओं, एल्गोरिदम, फ़ंक्शन और ऑब्जेक्ट-ओरिएंटेड प्रोग्रामिंग सहित पायथन के विभिन्न पहलुओं पर व्यावहारिक ज्ञान प्रदान किया। इस व्यापक 15-दिवसीय कार्यक्रम ने प्रतिभागियों को तकनीकी कौशल और सॉफ्ट स्किल दोनों से लैस किया है, जिससे वे अपनी पेशेवर यात्रा के लिए बेहतर तरीके से तैयार हो सके।
प्रशिक्षण का समन्वय संस्कृति स्कूल आफ इंजीनियरिंग एंड इंफार्मेशन टेक्नोलाजी की डॉ. गरिमा गोस्वामी और सुश्री रोमी तिवारी ने किया, जिन्होंने कार्यक्रम के सुचारू निष्पादन को सुनिश्चित किया और प्रतिभागियों की रसद संबंधी ज़रूरतों को पूरा किया। सीएसई विभाग के डीन डॉ. एस. वैराचिलाई के नेतृत्व ने कार्यक्रम की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उन्होंने पूरे प्रशिक्षण के दौरान मार्गदर्शन और सहायता प्रदान की।

देशभक्त जी की स्मृति में सड़क का नामकरण हो विजय गुप्ता की कलम से

मथुरा। मूर्धन्य पत्रकार एवं शिक्षाविद् श्रद्धेय देशभक्त वाजपेई जी की स्मृति में अमरनाथ विद्या आश्रम से जुड़ी हुई किसी भी सड़क का नामकरण “देशभक्त वाजपेई मार्ग” होना चाहिए।
     उल्लेखनीय है कि देशभक्त जी ने लगभग पांच दशक से पत्रकारिता और शिक्षा के क्षेत्र में ब्रजभूमि की महत्वपूर्ण सेवा ईमानदारी, सच्चाई और कर्तव्य निष्ठा के साथ की। ईश्वर की उन पर ऐसी कृपा रही कि देह त्याग से कुछ समय पूर्व तक उन्होंने अपने इस मिशन को जारी रखा।
     यह भी सर्व विदित है कि वे एक तपस्वी व्यक्ति थे। कुछ वर्ष पूर्व तक वे गिर्राज जी की सपत्नीक दंडवती परिक्रमा करते उसके बाद जब दंडवती परिक्रमा नहीं कर पाते तो पैदल और जब अस्वस्थता के कारण पैदल की भी उनकी सामर्थ नहीं रही तो बैटरी रिक्शा से ही परिक्रमा जारी रखी।
     यह कितनी अदभुत बात है कि शिवरात्रि के महान पर्व पर मंदिर जाकर शिव पूजा, अर्चना, अभिषेक व हवन के पश्चात घर आकर अपने प्राण त्यागे। उनकी दिव्यता का यह ईश्वरीय प्रमाण पत्र है। देशभक्त जी की दुर्लभता को देखते हुए तथा उनकी यादगार बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि अमरनाथ विद्या आश्रम से जुड़ी हुई किसी भी सड़क का नाम “देशभक्त वाजपेई मार्ग” होना चाहिए। हालांकि उनका नाम अनंत स्वरूप वाजपेई ‘देशभक्त” था किंतु लोग उन्हें देशभक्त वाजपेई के नाम से जानते रहे हैं।
     अमरनाथ विद्या आश्रम से के. आर. कॉलेज तक कब्रिस्तान होकर जाने वाली सड़क का नाम उनके नाम पर श्रेष्ठ रहेगा क्योंकि अमरनाथ से जुड़ी अन्य सड़कों के नामकरण पहले से ही हो चुके हैं। यह सड़क शहर के एक हिस्से को दूसरे हिस्से से शॉर्टकट से जोड़ने वाली छोटी सी महत्वपूर्ण सड़क है। यह रास्ता अमरनाथ विद्या आश्रम से सटा हुआ भी है। इसका कोई नामकरण भी नहीं हुआ है। अतः देशभक्त जी की यादगार के लिए इसका नाम “देशभक्त वाजपेई मार्ग” होना चाहिए।
     इस दिशा में देशभक्त जी के परिवारीजनों को प्रयास करने होंगे। पत्रकारों, राजनैतिक व सामाजिक लोगों को भी आगे आकर नगर निगम के द्वारा जल्द से जल्द इस आशय का प्रस्ताव पास कराकर अपना कर्तव्य पूरा करना चाहिए।
     सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है की देशभक्त जी ने धन, दौलत, जमीन, जायदाद आदि कुछ नहीं बटोरा। उन्होंने तो सिर्फ अपनी इज्जत बनाई और दुनियां वालों को यह संदेश दे गए कि “जैसे करम करोगे वैसे फल देगा भगवान” इसी संदेश को चरितार्थ करते हुए दुर्लभ गति को प्राप्त हुए और गिर्राज जी के चरणों में जा पहुंचे। हम सभी को उनके आदर्श जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए।